कहार एवं उपजातियों के समुदाय का समुचित विकास नहीं होने का कारण : इं0 आर के राम
कहार जाति के विकास को लेकर इं0 आर के राम ने कही अपनी बात
वाराणसी / उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के रहने वाले इं0 आर के राम जो खुद एक कहार जाति समाज के हैं। सरकारी विभाग से रिटायर होने के बाद इं0 आर के राम ग्लोबल कहार समाज चेरिटेबल ट्रस्ट संस्था के माध्यम से कहार व उनकी उपजातियों के विकास के लिए आगे आकर बढ़-चढ़कर समाज के बीच में कार्य कर रहे हैं। इं0 आर के राम ग्लोबल कहार समाज चेरिटेबल ट्रस्ट में राष्ट्रीय महामंत्री सह अध्यक्ष दिल्ली प्रदेश पद पर नियुक्त है।
इं0 आर के राम कहार व उनकी उप जातियों के विकास न होने के कारण का पूरा विश्लेषण करते हुए बताते हैं कि इतिहास गवाह है। कि किसी भी समुदाय के विकास के लिए यह अति आवश्यक है कि समुदाय के लोग अपने समाज, संस्कृति, उत्तपत्ति, अपने इतिहास से परिचित हो । कहा जाता है कि कहार समुदाय भारत का मूलनिवासी है तथा देश के विभिन्न भागों में १०० से ज्यादा उप/सरनेम से जाना जाता है जैसे-कहार ,कीर , कश्यप, बाथम, भोई, मेहरा, माझी, बर्मन, ढीमर, धीवर, धूरिया, तोमर ,तुराहे, गौड, सौधिया, मल्लाह, केवट, धीमर, रायकवार, निषाद, गौडीया,सहनी, कैवर्त, झालोमालो,बेस्ता, गंगापुत्र, मझवार,जलारी,कट्टूनायकन,आर्यन,मागियार,मोगविरार,पनियाकल,वलीनियर,आर्यवथी,मुकुवा,नुनायन,.नामशुद्र,ढेग्रा,मोनाया,पलत्तायु,पल्लीरेड्डी ,नैयाला,वानेरेड्डी,पल्लिकपु,अग्रिकुला,क्षत्रिया,वाडा,बालिजा,गगवार,गुडला,वन्याकुलक्षत्रिय,पल्ली,वालन,वेनेकपु,धिवरा,बिनःद,कोटचा,खरिया,मलिशस्या,छविक्कम,कदुम्बई,काडूपोट्यन,कछारी,पानीया,कोरछा,मझियार,घोडिया,धूरियाचंद्रवंशी,रवानी,इत्यादि।उपर्युक्त वर्णित उपजातियों/ सरनेम के अधिकतर समाज के लोग प्रायः अपने जाति के कालम में " कहार" लिखते हैं लेकिन कुछ अन्य लोग केवट, मल्लाह, गोंड, धीमर इत्यादि इत्यादि... लिखते हैं। इस प्रकार हमारा समुदाय विभिन्न जातियों में बट जाता है और कहार समुदाय की वास्तविक जनसंख्या सरकारी अभिलेखों में वास्तविकता से बहुत ही कम प्रर्दशित होती है जबकि ब्राह्मण, क्षत्रिय, यादव, कुर्मी, जाट, जाटव / हरिजन समुदाय में ऐसा नहीं है क्योंकि वे भले ही विभिन्न सरनेम से जानें जाते हैं लेकिन जाति के कालम में समुदाय विशेष के सभी लोग अपनी सम्बन्धित एक जाति ही अंकित करते हैं। बहुत ही जल्द हमारे देश में " राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर " होने जा रही है , अतः सभी भाईयों से अनुरोध है कि कृपया इस अवसर का लाभ उठाते हुए अपनी गणना एकीकृत हो कर ही करें। आप सभी लोगों ने पढ़ा और सुना होगा कि " जिसकी लाठी उसकी भैंस" यह हर युग में समान रूप से चरितार्थ हुआ है लेकिन " लाठी का अर्थ समयानुसार बदलता रहा है- कभी ज्ञान शक्ति, कभी शारीरिक शक्ति, कभी धन शक्ति, कभी अस्त्र-शस्त शक्ति लेकिन आज हमारे जैसे देश में सबसे अधिक एवं महत्त्वपूर्ण शक्ति- जन शक्ति अर्थात जनसंख्या (Vote) वोट शक्ति है। हमारे कहार समुदाय की वोट शक्ति बहुत बड़ी है लेकिन समुदाय एक न होकर अलग अलग जाति में बट गया है। इस कारण से हमारा महत्त्व सरकारी आंकड़ों और राजनीतिक पार्टियों की दृष्टि में वास्तविकता से अत्यंत सूक्ष्म हो गया है। कहार एवं उपजातियों के सभी साथियों से अनुरोध है कि कृपया इस विषय में अवश्य ही विचार करने का कष्ट करें कि क्या हम अपने विभिन्न सरनेम को क़ायम रखते हुए जाति के कालम में सर्वसम्मति से एक हो जाय?
क्या कहार समाज के विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी गण अपने संगठनों को क़ायम रखते हुए एकीकृत हो कर एक समंन्वय समिति का गठन कर सकते हैं। क्या हम लोग अपनी नई पीढ़ी को सशक्त बनाने के लिए आपसी सहयोग से पहली प्राथमिकता शिक्षा को दे सकते हैं? क्या स्वयं एवं समाज की भलाई के लिए फिजूलखर्ची, कुरीतियों, अनावश्यक विवादित आपसी बयानबाजी को कम कर सकते हैं?
इसके अलावा इं0 आर के राम ने अपने समाज के लोगों से निवेदन किया कि उक्त वर्णित विषय एक व्यक्तिगत विचार है जो आप सभी साथियों के समक्ष इस आशय तथा अनुरोध के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है कि आप कृपया इस पर अवश्य ही विचार करने का कष्ट करेंगे।