अब नई सीता बनना होगा...
वर्तमान समय मे जिस प्रकार से महिलाओं पर अत्याचार बड़ा है उसको लेकर अपना दल की नेत्री अनीता पटेल के द्वारा लिखा गया यह सुंदरता कविता
वाराणसी l
लाख जतन कर लें राजा जनक,
सुता को विदा करें लाव लश्कर से।
पर खाना तो था दर दर की ठोकर,
उनकी सेज तो बननी थी पत्थर से।।
सुंदर कोमल फूलों को तोड़ने मात्र से,
जो नाजुक से हाथ लाल हो जाते थे।
जंगल के दुरूहता में लकड़ी के साथ,
भला वो भोजन को कैसे पकाते थे।।
वरण करते समय सीता ने राम की,
देखा शील, भुजबल और मोहकता।
क्या पता था ये सब काम न आयेगा,
उनके भविष्य में है बस भयावहता।।
क्या सच में नसीब ही उन्हें ऐसा मिला,
या नारी जाति का भविष्य दर्शाना था
गर महलों की राजकुमारी भी हो तो,
तब भी बस चुपचाप सहते जाना था।।
नसीब ही कुछ ऐसा मिला था उन्हें,
या पति की भी यहाँ कुछ खामी थी।
जब भरत नहीं थे ननिहाल थे अपने,
फिर राज्याभिषेक की क्यों हामी थी।
पत्नीव्रता सीता ने वनगमन में भी,
पति का ही साथ देना वरण किया।
पर पति का साथ देने की ख़ातिर,
अपने सारे रिश्तों का मरण किया।।
पर कैसे पति थे? और कैसे देखा?
पत्नी को आभूषणों को उतारते हुए।
उफ़्फ़! कैसे उनका दिल न पसीजा,
राजकुमारी को भगवा पहनाते हुए।।
वन में भटकीं, कंदमूल भी खायीं,
शूल भी चुभा फिर भी मुस्कुरायीं।
हर क्षण वो बस पतिधर्म निभायीं,
अपने निर्णय पर जरा न पछतायीं।।
पर पति? उन्होंने भला ये क्या किया,
अपनी ही पत्नी को मोहरा बना दिया।
रावण वध के और तरीके हो सकते थे,
बिन हरण के और रास्ते हो सकते थे।।
कहते हैं विकल राम दर-दर को भटके थे,
ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ वो न भटके थे।
गर युद्ध लड़े थे सच में सीता को पाने को,
तो रजक की सुन, क्यों छोड़ा अपनाने को?
निभाना था गर राजधर्म तो भी,
क्यों नहीं गलत को गलत कहा।
सीता ने तो बिन गलती सजा पायी,
राम ने क्यों न गलत को दण्ड दिया।।
पता था न सीता का सतीत्व उन्हें,
औरों के लिए अग्निपरीक्षा क्यों।
क्यों नहीं कहा विश्वास है मुझको,
इसपर तर्क या कोई समीक्षा क्यों।।
खुद को अच्छा बनाने की खातिर,
पत्नी की आत्मा का कत्ल किया।
एक नीच के अनर्गल आलापों से,
स्त्री के स्वाभिमान को खत्म किया।।
निभाना था गर राजधर्म तो भी,
क्यों नहीं गलत को गलत कहा।
क्यों नहीं कहा मेरी सीता सती है,
क्यों नारी के खिलाफ अनर्गल सहा।।
पहली गलती सीता का वनागमन था,
चलो इसको भी पतिधर्म मान लिया।
अपनी ही पत्नी को अपहृत कराया,
ऐसे में कौन सा अच्छा काम किया?
रावण के पाप तो इतने ज्यादा थे,
इस सजा में भी मारा जा सकता था।
पर राक्षसों के बीच भेज सीता को,
ऐसे में रोज रुलाना क्या अच्छा था?
माना राम रावण वधकर सीता को लाये,
पर उनकी पवित्रता पर क्या धब्बा था?
हर किसी की नजर में वो माँ सीता थी,
फिर भी अग्निपरीक्षा क्या अच्छा था?
मान लिया अग्निपरीक्षा भी सही था,
क्योंकि उनकी पवित्रता का प्रतिष्ठा था।
पर नीच गंवार प्रजा के कहने मात्र से,
गर्भवती को निकालना क्या अच्छा था?
क्यों नहीं राम ने सीता को सही ठहराया,
सतीत्व की प्रतिमूर्ति कह क्यों न अपनाया।
क्या प्रभु रूप में नारी का भाग्य बताना था,
हर जन्म में बस उसे परीक्षा देते जाना था।।
सीताजी को भी यहाँ प्रतिरोध करना था,
क्योंकि दांव पर लगा नारी का अस्मिता था।
रामजी की माताओं को भी आगे आना था,
जहाँ कसौटी पर नारी जाति का प्रतिष्ठा था।।
गर नारी हैं तो कुछ बातें हमको भी समझना होगा,
हमारी संस्कृति और परंपराएं ही हमारा गहना होगा।
पर बात जब अस्तित्व, चरित्र और मर्यादा की हो,
फिर तो एकजुट हो, नई सीता बन लड़ना होगा।।