Varanasi:काशी के महाश्मशान पर जलती चिताओं के बीच गूंजने लगी घुंघरुओं की आवाज,जानें क्या है परम्परा

Varanasi:काशी के महाश्मशान पर जलती चिताओं के बीच गूंजने लगी घुंघरुओं की आवाज,जानें क्या है परम्परा

वाराणसी : काशी भगवान त्रिशूल के शिव पर बसी है.जो कहीं नहीं होता वैसा सिर्फ और सिर्फ काशी में दिखाई देता है.काशी ही एकमात्र ऐसा शहर है जहां मृत्यु के शोक के बीच जश्न होता है और गम खुशी में बदल जाता है.ऐसी ही एक अनोखी परम्परा है महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच नगर वधुएं के नृत्य की.इसका सीधा कनेक्शन राजमान सिंह से भी है.

दरसअल, हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को बाबा महाश्मशान नाथ का वार्षिक श्रृंगार होता है.इस दिन ही सैकड़ो साल पहले राजा मान सिंह ने इसका पुनः उद्धार कराया था.उस समय मंदिर के इस आयोजन के लिए राजा मान सिंह ने कई संगीतकारों और कलाकारों को इसके उद्घाटन समारोह के लिए निमंत्रण भेजवाया था. लेकिन महाश्मशान में आने के लिए कोई कलाकार तैयार नहीं हुआ तब नगर वधुएं आकर बाबा महाश्मशाननाथ बाबा को अपनी नृत्यांजलि अर्पित की थी.बस तब से यह परम्परा चली आ रही है.

ये है मान्यता

व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि ऐसी धार्मिक मान्यता है कि आज के दिन जो भी नगर वधुएं यहां आकर महाश्मशान के बीच अपनी नृत्यांजलि बाबा मसाननाथ को अर्पित करती है.उन्हें अगले जन्म में इस नरकीय जीवन से मुक्ति मिल जाती है.इसी कामना से हर साल इस विशेष तिथि पर बड़ी संख्या में नगर वधुएं यहां प्रायश्चित के लिए आती है.

पूरी रात गूंजती है घुंघरुओं की आवाज

नगर वधुओं के नृत्यांजलि का ये पूरा कम पूरी रात महाश्मशान पर चलता है.इस दौरान रक तरफ चिताएं जलती है तो दूसरे तरफ घुंघरुओं की आवाज गूंजती है.जिससे महाश्मशान में मृत्यु का शोक भी खुशी के माहौल में बदल जाता है.यह परम्परा सैकड़ो सालों से चली आ रही है.बताते चलें कि सिर्फ और सिर्फ काशी में ऐसा अद्भुत और अनोखा नजारा देखने को मिलता है.