Dev Diwali:काशी के इस प्राचीन घाट से शुरू हुई थीदीपोत्सव की ये परम्परा,आज सात समुद्रर पार से आते है सैलानी

Dev Diwali:काशी के इस प्राचीन घाट से शुरू हुई थीदीपोत्सव की ये परम्परा,आज सात समुद्रर पार से आते है सैलानी

वाराणसी l बनारस की देव दिवाली बेहद खास होती है.इस दिन गंगा तट पर देवलोक सा नजारा दिखाई देता है.मनभावन और मनोरम दृश्य के लिए यह उत्सव पूरे दुनिया में जानी जाती है और यही वजह है कि उस उत्सव में दुनियाभर के अलग अलग देशों से पर्यटक आते हैं. देव दिवाली पर दीपोत्सव के इस परम्परा की शुरुआत महज 39 साल पहले हुई थी.

1985 में पहली बार कार्तिक पूर्णिमा के दिन काशी के घाटों पर दीपोत्सव मनाया गया था.मंगलागौरी मंदिर के महंत नारायण गुरु के साथ अन्य लोगों ने इसका बीड़ा उठाया था. उस समय पंचगंगा घाट के साथ आस पास के पांच घाटों पर पहली बार हजारों दीप जले थे. जिसे देखने के लिए हजारों लोग वहां पहुंच गए थे.

पांच घाटों से शुरू हुई थी परम्परा

नारायण गुरु ने बताया कि उस समय मुहल्ले के चाय पान की दुकान पर इसके लिए टीन रखवाए गए थे.जिसमें किसी ने 1 लीटर तो किसी ने आधा लीटर तेल दान में दिया था.दान के उन्ही तेल से पांच घाटों पर दीप जले थे.जिसके बाद इस परम्परा की शुरुआत हुई और आज पांच घाटों से शुरू हुआ ये सफर महज 39 सालों में प्रांतीय मेले तक पहुंच गया.अब इस आयोजन में यूपी की योगी सरकार खुद लाखों दीये जलवा रही है.

पीएम मोदी भी निहार चुके है खूबसूरती

आयोजन की भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस उत्सव को निहारने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां आ चुके है.इस बार इस आयोजन में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ उपराष्ट्रपति समेत कई वीवीआइपी मेहमान शामिल होंगे.इसके अलावा बॉलीवुड को हस्तियां भी इस आयोजन को निहारने के लिए यहां आते है.

ये है धार्मिक मान्यता

इस दिन को लेकर धार्मिक मान्यता भी है.कथाओं के अनुसार, इस दिन ही भहवान शिव ने त्रिपुर नाम राक्षस का वध किया था. जिसकी खुशी में देवलोक से सभी देवी देवता धरती पर आकर गंगा किनारे दीप जलाए थे.ऐसी मान्यता है को आज भी इस दिन सभी देवी देवता स्वर्गलोक से धरतीलोक पर आते है और अदृश्य रूप स इस आयोजन के साक्षी बनते है.