वसीयत...
समाजसेवी मधु सिंह द्वारा लिखा गया सुंदर कविता
*अपने पूरे होश-ओ-हवास में*
*लिख रही हूं, आज... मैं*
*वसीयत ..अपनी*
*मेरे मरने के बाद*
*खंगालना.. मेरा कमरा*
*टटोलना.. हर एक चीज़*
*घर भर में ..बिन ताले के*
*मेरा सामान.. बिखरा पड़ा है*
*दे देना... मेरे ख़्वाब*
*उन तमाम.. स्त्रियों को*
*जो किचेन से*
*बेडरूम तक सिमट गयी ..*
*अपनी दुनिया में*
*गुम गयी हैं*
*वे भूल चुकी हैं सालों पहले*
*ख़्वाब देखना !*
*बांट देना.. मेरे ठहाके*
*वृद्धाश्रम के.. उन बूढों में*
*जिनके बच्चे*
*अमरीका के जगमगाते शहरों में*
*लापता हो गए हैं !*
*टेबल पर.. मेरे, देखना*
*कुछ रंग पड़े होंगे*
*इस रंग से ..रंग देना उस बेवा की साड़ी*
*जिसके आदमी के खून से*
*बोर्डर... रंगा हुआ है*
*तिरंगे में लिपटकर*
*वो कल शाम सो गया है !*
*आंसू मेरे दे देना*
*तमाम शायरों को*
*हर बूंद से*
*होगी ग़ज़ल पैदा*
*मेरा वादा है !*
*मेरा मान, मेरी आबरु*
*उस वेश्या के नाम है*
*बेचती है ज़िस्म जो*
*बेटी को पढ़ाने के लिए !*
*इस देश के एक-एक युवक को*
*पकड़ के*
*लगा देना इंजेक्शन*
*मेरे आक्रोश का*
*पड़ेगी इसकी ज़रुरत*
*क्रांति के दिन उन्हें !*
*दीवानगी मेरी*
*हिस्से में है*
*उस सूफ़ी के*
*निकला है जो*
*सब छोड़कर*
*ख़ुदा की तलाश में !*
*बस !*
*बाक़ी बची*
*मेरी ईर्ष्या*
*मेरा लालच*
*मेरा क्रोध*
*मेरा झूठ*
*मेरा स्वार्थ*
*तो*
*ऐसा करना*
*उन्हें मेरे संग ही जला देना...!!!*