क्या करोगे जानकर, इतिहास अपने देश का, यह किसीअनुवाद के अनुवाद का अनुवाद है

क्या करोगे जानकर, इतिहास अपने देश का, यह किसीअनुवाद के अनुवाद का अनुवाद है

तौफ़ीक़ खान के कलम से

   वाराणसी /  देश अजीब‌ किस्म के कशमकश से गुजर रहा है हालांकि कहा जा‌ रहा‌ है की देश सुधर रहा है। झुलसते देश के परिवेश में समावेश कम बिद्वेश को लगातार हवा दे रहा‌ है। अब तो हालात इस कदर खराब‌ है कि आक्सीजन पर सांस चल रही‌ है। कितना बदल गया है इन्सान गरीबी बेकारी बेरोजगारी महंगाई मेहमान बनकर हिन्दुस्तान में सम्मान पा रही है‌। सियासतदार इनके बदौलत ही ताजपोशी के हकदार बनते हैं आते हैं फटे कुर्ता पाजामा में जाते हैं शानदार बनकर यह देश आर्या वर्त के नाम से सुशोभित होकर बिश्व गुरू बनकर‌ सनातनी धर्म ध्वजा का सम्वाहक सदियों तक बना रहा। समय के साथ इतिहास ने करवट बदला तो भारत वर्ष , हिन्द, हिंदुस्तान फिर इंडिया बनकर सैकड़ों साल की गुलामी को भी देखा है।तमाम प्रताणनाओ की सीमाओं को पार कर भी सर्वै भवन्तु सुखिन के सूत्रों को आत्मसात करता‌ रहा! आज जब आज़ादी को मिले सात दशक से उपर होने को‌ है तब‌ भी जिस तरह का घिनौना खेल धर्म परिवर्तन का खेला जा रहा‌ है वह वर्तमान ब्यवस्था में दुर्बयस्था को इंगित कर रहा है। मजहब नहीं सिखाता आपस‌ मे बैर करना तो फिर जबरीया धर्म परिवर्तन का खेल क्यू?जब की मालूम है कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी! समय करवट ले‌ रहा‌ है सबको भरपूर ज़बाब दे रहा है।कोरोना पर एकाधिकार की बात कोई नहीं करता सोखा ओझा पंडित मुल्ला मौलवी औलिया फकीर सब फेल उपर वाले ने गजब का कर दिया खेल?मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारा सबमें ताला बन्द! इन्सान घरों के भीतर जानवर स्वक्षन्द!बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी इस ढपोर शंखी समाज में मानवता के खिलाफ जो रिवाज कायम होता जा रहा है उसका परिणाम भी भयावह हो‌ रहा‌ है। अपनी करनी पर ही इन्सान खून का आंसू रो रहा है । जाना तो सभी को एक ही जगह‌‌ है !जहां न जाति होगी न धर्म वहां पर केवल देखा जायेगा कर्म?आखिर इस मर्म को‌ क्यो नही समझ पाता है मतलबी मानव! अपने अंहकार में बन गया है दानव!